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नज़्म
ये धूम-धड़क्का साथ लिए क्यूँ फिरता है जंगल जंगल
इक तिनका साथ न जावेगा मौक़ूफ़ हुआ जब अन्न और जल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
लेकिन जो फूल खिलते हैं सहरा में बे-शुमार
मौक़ूफ़ कुछ रियाज़ पे उन की नहीं बहार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
''एक हंगामे पे मौक़ूफ़ थी घर की रौनक़''
मुफ़्लिसी साथ लिए आई थी इक जंग-ओ-जिदाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
नहीं मौक़ूफ़ इन्ही अय्याम पर जब भी ख़याल आया
तसव्वुर तेरे ब'अद उस का भी नक़्शा सामने लाया
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सुनहरी फ़स्ल तक उस की चमक नहीं मौक़ूफ़
कि अब निज़ाम-ए-कोहन भी उसी की ज़द में है
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
था तिरी ज़ात पे मौक़ूफ़ मिरा नाज़-ओ-ग़ुरूर
ख़ाकसारों में शुमार अब है मिरा तेरे बाद