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नज़्म
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
आज, इस साअत-ए-दुज़दीदा-ओ-नायाब में भी,
जिस्म है ख़्वाब से लज़्ज़त-कश-ए-ख़म्याज़ा तिरा
नून मीम राशिद
नज़्म
इस तरह उलझें कि जिस्मों की थकन ख़ुश्बू बने
तो वो घड़ी अहद-ए-वफ़ा की साअत-ए-नायाब है
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
सर्द रातों का हसीं इक ख़्वाब है चेहरा तिरा
क्या कहूँ बस मंज़र-ए-नायाब है चेहरा तिरा
जय राज सिंह झाला
नज़्म
तेरी बेदारी नहीं है इक मुसलसल ख़्वाब है
क्या तू वाक़िफ़ है कि इस्मत गौहर-ए-नायाब है