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नज़्म
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उठाए कुछ वरक़ लाले ने कुछ नर्गिस ने कुछ गुल ने
चमन में हर तरफ़ बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्का सा ख़ुमार
वो मिरे नग़्म-ए-शीरीं का असर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
नर्गिस-ए-अरज़क के शैदा दीदा-ए-आहू भी देख
ऐ सुनहरी ज़ुल्फ़ के क़ैदी सियह गेसू भी देख
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नर्गिस-ए-मख़मूर चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ हो जाएगी
कोहसारों की तरफ़ से ''सुर्ख़-आंधी'' आएगी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हैं खिले कियारियों में नर्गिस-ओ-नसरीन-ओ-समन
हौज़ फ़व्वारे हैं बंगलों में भी पर्दे चलवन
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नश्शा-ए-नर्गिस-ए-ख़ूबान-ए-वतन तुम से है
इफ़्फ़त-ए-माह-ए-जबीनान-ए-वतन तुम से है