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नज़्म
मल्बूस परेशाँ दिल ग़मगीं इफ़्लास के नश्तर खाते हैं
मस्जिद के फ़रिश्ते इंसाँ को इंसान से कमतर पाते हैं
नुशूर वाहिदी
नज़्म
शब-ए-एशिया के अँधेरे में सर-ए-राह जिस की थी रौशनी
वो गौहर किसी ने छुपा लिया वो दिया किसी ने बुझा दिया
नुशूर वाहिदी
नज़्म
ये गाँव का मंज़र सन्नाटा और शाम की धुँदली तारीकी
इक शाम बहुत रंगीन मगर मुफ़्लिस की निगाहों में फीकी
नुशूर वाहिदी
नज़्म
कोयल की सुरीली तानों पर थम थम के पपीहा गाता है
हल हो के हवा की लहरों में सावन का महीना आता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
इधर से गंगा को जा रहे हैं कुछ आदमी छागलें सँभाले
उधर से गंगा से आ रही है कुछ औरतें नूर में नहाए
नुशूर वाहिदी
नज़्म
नज़र आए रज़ा-कारान-ए-नीली-पोश सफ़-दर-सफ़
मिरे दिल में सुरूर उतरा मिरी आँखों में नूर आया
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
कभी रातों में घुला नश्शा-ए-सहबा-ए-बहार
कभी सुब्हों में मिरी गर्मी-ए-हंगाम-ए-नुशूर
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरी नीची नज़र ख़ुद तेरी इस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आज़मा लेती तो अच्छा था