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नज़्म
अब ताब नहीं नज़्ज़ारे की जल्वे न दिखाओ रहने दो
ख़ुर्शीद-ए-मोहब्बत के रुख़ से पर्दे न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
मैं खो गया हूँ कई बार इस नज़ारे में
वो उस की गहरी जड़ें थीं कि ज़िंदगी की जड़ें?
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
दिलावर फ़िगार
नज़्म
ज़ख़्म खाए हुए मज़दूर के बाज़ू भी तो हैं
ख़ाक और ख़ून में ग़लताँ हैं नज़ारे कितने