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नज़्म
कहीं भी कोई रख़्ना, कोई नक़्स, मैं नहीं समझ सका
बदन भी तंदरुस्त है मगर ये नौनिहाल चार साल का
सत्यपाल आनंद
नज़्म
गर्मी-ए-ख़ुर्शीद से सोना पिघलता है कहीं
जौहरी भी नुक़्स के साँचे में ढलता है कहीं
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
कट मरा नादाँ ख़याली देवताओं के लिए
सुक्र की लज़्ज़त में तू लुटवा गया नक़्द-ए-हयात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें