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नज़्म
'नासिर-काज़मी' के अशआ'र में छुपे हुए नौहे नहीं सुने
जो हिन्दोस्तान को बनते देखा होता
नादिया अंबर लोधी
नज़्म
कमरे की खिड़की से आती उदासी चहार-सू फैलती जा रही है
अंधेरा उदासियों के नौहे पढ़ रहा है
जानाँ मलिक
नज़्म
इसी लिए तो इस वीरान हवेली के आँगन में ख़िज़ाँ के नग़्मे
ज़िंदा इंसानों के नौहे बन कर गूँजते हैं
जमीलुर्रहमान
नज़्म
फिर खड़े हो गए अपनी दुम के सहारे
कतरने लगे ऐसे प्यासी ज़बानों के नौहे जो मश्कों के