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नज़्म
ये शेर-गोई है ख़ुद-कलामी का इक ज़रीया
इसी ज़रीये इसी वसीले से मैं ने ख़ुद से वो बातें की हैं
तारिक़ क़मर
नज़्म
मक़ाम-ए-नाज़ुक पे ज़र्ब-ए-कारी से जाँ बचाने का है वसीला
कि अपनी महरूमियों से छुपने का एक हीला?
नून मीम राशिद
नज़्म
मैं देवी प्यार की हूँ हुस्न ही मेरा वसीला है
ख़ुलूस-ओ-सादगी ज़ेवर वफ़ा मेरा क़बीला है
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
मैं कि तख़्लीक़-ए-बशर का हूँ वसीला लेकिन
क्यूँ दिखाई नहीं देता है तुम्हें मेरा शुऊ'र