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नज़्म
पारा पारा अब्र सुर्ख़ी सुर्ख़ियों में कुछ धुआँ
भूली-भटकी सी ज़मीं खोया हुआ सा आसमाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
राद हूँ बर्क़ हूँ बेचैन हूँ पारा हूँ मैं
ख़ुद-प्रुस्तार, ख़ुद-आगाह ख़ुद-आरा हूँ मैं