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नज़्म
अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि
किसी ने मिरे सर पे फूलों भरा थाल उल्टा दिया
परवीन शाकिर
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं दुनिया की उन ज़ोहरा-जबीनों से
हुई जिन से न मेरे शौक़-ए-रुस्वा की पज़ीराई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
न रिहाई की पज़ीराई न असीरी ही की शर्म
शहर के शहर का अफ़्साना वो रूहें जो सर-ए-पुल के सिवा
नून मीम राशिद
नज़्म
इशरत आफ़रीं
नज़्म
पत्ता पत्ता हर्फ़ गिरते हैं
कोई फ़िक़रा शजर के ज़ख़्म-ए-मोहमल की पज़ीराई नहीं करता