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नज़्म
हलवे के लिए फिर आज भी हम इक आस लगाए बैठे हैं
जो बात ज़बाँ पर ला न सके वो दिल में छुपाए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
ताकि रह-गीर और परदेसी कहीं ठोकर न खाएँ
राह से आसाँ गुज़र जाए हर एक छोटा बड़ा