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नज़्म
रंज रक्खा था मेहन रक्खा था ग़म रक्खा था
किस को परवाह था और किस में ये दम रक्खा था
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
एहसान से हो कर ला-परवाह चूहिया ने उस को दिया बयाँ
उन पे ग़ोता था मैं ने तो लगाया डूब चली थी भला कहाँ
नज़्म
क़ौम-ए-आवारा इनाँ-ताब है फिर सू-ए-हिजाज़
ले उड़ा बुलबुल-ए-बे-पर को मज़ाक़-ए-परवाज़