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नज़्म
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
तो बस इक तीन लफ़्ज़ी कलिमा कहना है मुझे तुम से
सुनो अल्फ़ाज़ की दुनिया से कैसी चश्म-पोशी ये
क़मर जहाँ नसीर
नज़्म
बपा है हर तरफ़ मातम सियह-पोशी है हर जानिब
ज़माना कर रहा है नौहा-ख़्वानी देखते जाओ
फ़ज़ल हक़ अज़ीमाबादी
नज़्म
आ इधर ऐ दोस्त आ तू मुझ से छुप सकता नहीं
सई-ए-ख़ुद-पोशी है क्यों जब मैं तुझे तकता नहीं