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नज़्म
पचास को वो क्रॉस कर के कुछ और ख़ूँ-ख़्वार हो गई है
अगर उसे आंटी कहो तो निगाह में हस्पताल रखना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
आदिल मंसूरी
नज़्म
पचास पैसे के अनार के लबों पे एक क़तरा नार रख दी
ख़ाक को ये गर्म बोसा कब नसीब था!
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
हमारे घर तीन रोज़ रह कर चले गए वो ब्लैक-ब्यूटी
मगर कम-अज़-कम पचास साबुन ग़रीब-ख़ाने में घिस गए हैं