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नज़्म
ख़ून की प्यास खादी के पैराहनों में
जगमगाते हुए क़ुमक़ुमे, पार्क, बाग़ात और म्यूजियम
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हमेशा बे-यक़ीनी के ख़तर से काँपते आए
हमेशा ख़ौफ़ के पैराहनों से अपने पैकर ढाँपते आए
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरे पैराहन-ए-रंगीं की जुनूँ-ख़ेज़ महक
ख़्वाब बन बन के मिरे ज़ेहन में लहराती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उन का आँचल है कि रुख़्सार कि पैराहन है
कुछ तो है जिस से हुई जाती है चिलमन रंगीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिस्ल-ए-पैराहन-ए-गुल फिर से बदन चाक हुए
जैसे अपनों की कमानों में हों अग़्यार के तीर
अहमद फ़राज़
नज़्म
जिस के परवानों में मुफ़्लिस भी हैं ज़रदार भी हैं
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम
शकील बदायूनी
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ميں تو جلتي ہوں کہ ہے مضمر مري فطرت ميں سوز
تو فروزاں ہے کہ پروانوں کو ہو سودا ترا