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नज़्म
जिस ने आफ़ाक़ पे फैलाया है यूँ सेहर का दाम
दामन-ए-वक़्त से पैवस्त है यूँ दामन-ए-शाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हैं यक-बारगी गूँज उठते ख़ला ओ मला के जलाजिल
जलाजिल के नग़्मे बहम ऐसे पैवस्त होते हैं जैसे
नून मीम राशिद
नज़्म
सैर के क़ाबिल है दिल सद-पारा उस नख़चीर का
जिस के हर टुकड़े में हो पैवस्त पैकाँ तीर का