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नज़्म
हर दर-ओ-दीवार पे चस्पाँ हैं उन के इश्तिहार
फ़न के जो माहिर थे वो भी हो गए बे-ए'तिबार
सय्यद हुसैन अली जाफ़री
नज़्म
म'आनी-ओ-मफ़्हूम जो उन पे चस्पाँ किए थे
अब उन की हक़ीक़त किसी वाहिमे से ज़ियादा नहीं है