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नज़्म
रबूद आँ तुर्क शीराज़ी दिल-ए-तबरेज़-ओ-काबुल रा
सबा करती है बू-ए-गुल से अपना हम-सफ़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
और उन में हैं वो जाम भी जिन को मुग़ल ले आए थे
तातार से क़ंधार से काबुल से रुकना-बाद से
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
सराइओ, बग़दाद काबुल और ग़ज़्ज़ा की गलियों में खेलने वाले बच्चे
मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हैं
ज़ाहिद मसूद
नज़्म
ढूँडी है यूँही शौक़ ने आसाइश-ए-मंज़िल
रुख़्सार के ख़म में कभी काकुल की शिकन में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बद-हाल घरों की बद-हाली बढ़ते बढ़ते जंजाल बनी
महँगाई बढ़ कर काल बनी सारी बस्ती कंगाल बनी