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नज़्म
थीं सिवइयाँ क़ोरमा शीर और बिरयानी कबाब
हम उठे ख़ुश-ज़ाएक़ा खानों से हो कर फ़ैज़याब
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
दुनिया की इल्ला-बिल्ला ठसी पड़ी है मुझ में
हाँ कुछ काम की चीज़ें भी हैं इस कबाड़-ख़ाने में
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
इस सोज़-ए-जाँ-गुसिल से हर इक दिल कबाब है
फ़र्त-ए-तपिश है आतिश-ए-ग़म बे-हिसाब है
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
सीने में दिल कबाब है मुझ से हो सब्र किस तरह
एक बला शबाब है मुझ से हो जब्र किस तरह
साक़िब कानपुरी
नज़्म
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब