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नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
ज़िंदगी को नागवार इक सानेहा जाने हुए
बज़्म-ए-किबर-ओ-नाज़ में फ़र्ज़ अपना पहचाने हुए
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
न किब्र-सिनी न ज़ोफ़ न लाचारी से पनाह माँगूँगा
न दुनिया जहान की ख़ुशियाँ न शान-ओ-शौकत ही
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
ये हर शब सोच कर सोता हूँ आने वाली सुब्हों में
गुलों से पत्तियों से ओस की बूँदें चुरानी हैं
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
नई तहज़ीब ने बर्बाद ग़ारत कर दिया बिल्कुल
हम अपने मुल्क से अब इस को ग़ारत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हर दर पे पहुँच कर रो देना दुख पेट का सब से कह जाना
जब सामने आ जाता है कोई फैला कर हाथ को रह जाना
सरीर काबिरी
नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने