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नज़्म
है किब्रिया की शान गुज़रते ही माह-ओ-साल
ख़ुद दिल से दर्द-ए-हिज्र का मिटता गया ख़याल
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
शैख़-ए-मकतब के तरीक़ों से कुशाद दिल कहाँ
किस तरह किबरीत से रौशन हो बिजली का चराग़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
जहाँ पहोंचे हिन्दोस्तानी वहाँ पहुँची ज़बाँ उर्दू
मुरक्कब हर ज़बाँ से बन गई शीरीं ज़बाँ उर्दू
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
वही हैं लाएक़-ए-तहसीन 'कुब्रा' बाग़बानों में
कि जो कुम्हलाई कलियों को चमन की हैं खिला सकते
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
चाँद और सूरज का हमदम हूँ फ़लक-पैमा हूँ मैं
आज तक महव-ए-तलाश-ए-फ़ितरत-ए-कुबरा हूँ मैं