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नज़्म
न वो पहली सी महफ़िल है न मीना है न साक़ी है
कुतुब-ख़ाने में लेकिन अब तलक तलवार बाक़ी है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
कि अब शहरों में मार ओ अज़दर ओ कर्गस नहीं मिलते
कुतुब-ख़ानों में अफ़्क़ार-ओ-अक़ाएद जल्वा-फ़रमा हैं
सहर अंसारी
नज़्म
शुऊर-ओ-फ़िक्र का गहवारा इल्म-ओ-फ़न का अमीं
वरक़ वरक़ जहाँ महके हैं रंग-ओ-नूर के फूल
नसीर प्रवाज़
नज़्म
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ