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नज़्म
सफ़र मुश्किल हो कितना भी मगर वो साथ जाते हैं
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
कितना अर्सा लगा ना-उमीदी के पर्बत से पत्थर हटाते हुए
एक बिफरी हुई लहर को राम करते हुए
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
ये जान कर तुझे क्या जाने कितना ग़म पहुँचे
कि आज तेरे ख़यालों में खो गया हूँ मैं