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नज़्म
इस इश्क़ पे हम भी हँसते थे बे-हासिल सा बे-हासिल था
इक ज़ोर बिफरते सागर में ना कश्ती थी ना साहिल था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जिन के हंगामे अभी दरिया में सोते हैं ख़मोश
कश्ती-ए-मिस्कीन-ओ-जान-ए-पाक-ओ-दीवार-ए-यतीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
کانپتا ہے دل ترا انديشہء طوفاں سے کيا
ناخدا تو ، بحر تو ، کشتي بھي تو ، ساحل بھي تو
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरज़द हुए थे मुझ से ख़ुदा जाने क्या गुनाह
मंजधार में जो यूँ मिरी कश्ती हुई तबाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
आज कश्ती अम्न के अमवाज पर खेते हो क्यूँ
सख़्त हैराँ हूँ कि अब तुम दर्स-ए-हक़ देते हो क्यूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती