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नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
सर पर ऊनी शाल किसी के कोई कम्बल ओढ़े है
ग़र्ज़ कि जिस को जो है मयस्सर उस से जिस्म छुपाए है
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
सैर को जाता हूँ तंहाई का कम्बल ओढ़ लेता हूँ
समुंदर के किनारे जब भी गहरी सोच में डूबूँ