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नज़्म
मेरी फ़रियाद-ए-जिगर-दोज़ मिरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुई मेरी गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो ज़लज़ले कि पहाड़ों के पैर उखड़ जाएँ
बुलूग़ियत की वो टीसें वो कर्ब-ए-नश्व-ओ-नुमा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
बदनों में खब रहे हैं ख़ूबों के लाल जोड़े
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बस इसी कर्ब के पहलू में गुज़ारे हैं पहर
बस यूँही ग़म कभी काफ़ी कभी थोड़े आए