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नज़्म
क्यूँ डराते हैं अबस गबरू मुसलमाँ मुझ को
क्या मिटाएगी भला गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
बच्चे बाले गबरू बूढे ख़ुश-वक़्त हुए ख़ुश-हाल हुए
झूलों में झूल के फूल बने फूटबाल बने भौंचाल हुए
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
कभी तुम ख़ला से गुज़रो किसी सीम-तन की ख़ातिर
कभी तुम को दिल में रख कर कोई गुल-अज़ार आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
مرا عيش غم ،مرا شہد سم ، مري بود ہم نفس عدم
ترا دل حرم، گرو عجم ترا ديں خريدہ کافري
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वो पूरे हैं आगाह गुरु
वो कामिल-ए-रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे नाह गुरु
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नहीं देखे अगर ये शहर तो क्या ख़ाक देखा तुम ने दुनिया में
कभी लाहौर से गुज़रो तो थोड़ी देर को रुक कर
इशरत आफ़रीं
नज़्म
न पाक कोई न कोई नापाक कोई ऊँचा न कोई नीचा
गुरु का ये मय-कदा है इस जा हर इक को मिलता है जाम-ए-नानक