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नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या जाने किस ख़याल में गुम थी वो बे-गुनाह
नूर-ए-नज़र ये दीदा-ए-हसरत से की निगाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
न रोग हूँ मैं कि इस की तारीकियों में ख़िफ़्फ़त से डूब जाऊँ
न मैं गुनाहगार हूँ न मुजरिम
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
ये रूप सर से क़दम तक हसीन जैसे गुनाह
ये आरिज़ों की दमक ये फ़ुसून-ए-चश्म-ए-सियाह
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
गुनाह के तुंद-ओ-तेज़ शोलों से रूह मेरी भड़क रही थी
हवस की सुनसान वादियों में मिरी जवानी भटक रही थी
नून मीम राशिद
नज़्म
रहज़नों का क़स्र-ए-शूरा क़ातिलों की ख़्वाब-गाह
खिलखिलाते हैं जराएम जगमगाते हैं गुनाह