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नज़्म
क्यूँ न कहिए तुझ को इक सरचश्मा-ए-आब-ए-बक़ा
हैं ये आसार-ए-क़दीमा तेरे गंज-ए-बे-बहा
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
मैं गंज-ए-आब-ओ-ताब हूँ मैं बहर-ए-नूर-ओ-नार हूँ
ये चाँदनी की ठंडकें ये धूप की हरारतें