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नज़्म
क्या बधिया भैंसा बैल शुतुर क्या गौनें पल्ला सर-भारा
क्या गेहूँ चाँवल मोठ मटर क्या आग धुआँ और अँगारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जितने जहाँ में नाच हैं कंगनी से ता-गेहूँ
और जितने मेवा-जात हैं तर ख़ुश्क गूना-गूं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बंजर धरती की नस नस में पौदों का तख़य्युल लहराया
उजड़े खेतों पर साया है गेहूँ के सुनहरी ख़ोशों का