Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

ऐ सुब्ह-ए-वतन

साग़र निज़ामी

ऐ सुब्ह-ए-वतन

साग़र निज़ामी

MORE BYसाग़र निज़ामी

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    रूह-ए-बहार जान-ए-चमन

    मुतरिब या साक़ी-ए-मन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    ले जोश-ए-जुनूँ की ज़र्बों ने ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी तोड़ ही दी

    जम्हूर के संगीं पंजे ने शाही की कलाई मोड़ ही दी

    तारीख़ के ख़ूनीं हाथों से छीना है तिरा सीमीं दामन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    फिर लौट के आया सदियों में इक़बाल-ओ-तरब का सय्यारा

    किरनों में उफ़ुक़ पर फिर चमका पस्ती के अँधेरों का मारा

    हैराँ हैराँ नाज़ाँ नाज़ाँ ख़ंदाँ ख़ंदाँ रौशन रौशन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    धरती के तबस्सुम से चमके आफ़ाक़-ए-अबद के सय्यारे

    ज़ुल्मत के तरन्नुम से फूटे नूर-ए-अबदिय्यत के धारे

    ज़र्रों को तग़य्युर ने बख़्शा इक मो'जिज़ा-ए-ख़ुर्शीद-शिकन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    सोए हुए ज़र्रे जाग उठे अनवार-ए-सहर बेदार हुए

    एहसास-ए-ज़मीं बेदार हुआ अफ़्क़ार-ए-बशर बेदार हुए

    बिस्तर से ख़ज़फ़ रेज़े उट्ठे और लाल-ओ-गुहर बेदार हुए

    आँखों को मिला गुलज़ारों ने शाख़ों पर समर बेदार हुए

    नैनों से मस्ती बरसाती लो जाग उठी हस्ती की दूल्हन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    बंजर धरती की नस नस में पौदों का तख़य्युल लहराया

    उजड़े खेतों पर साया है गेहूँ के सुनहरी ख़ोशों का

    हर बर्ग-ए-फ़सुर्दा ने खींचा दोशीज़ा बहारों का दामन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    सुनसान बयाबानों में है इक जज़्बा-ए-गुलशन-आराई

    वीराँ खंडरों में लेता है महलों का तसव्वुर अंगड़ाई

    सीपी की रू-पहली झोली में हैं आज हज़ारों दुर्र-ए-अदन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    ज़र्रात में करवट लेने लगे सो लाला-रुख़्सान-ओ-माह-ए-जबीं

    संगीन चटानों में जागे असनाम के ख़द्द-ओ-ख़ाल-ए-हसीं

    है दैर कि का'बा क्या जाने है कौन सा आलम ज़ेर-ए-ज़मीं

    मस्जूद नहीं है कोई भी सज्दे में मगर झुकती है जबीं

    नक़्क़ाश है तेरी परछाईं आज़र है तिरे सूरज की किरन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    आहन की सलाबत में उभरा मा'सूम तसव्वुर नर्मी का

    फूलों की लताफ़त में उमडा आहन बन जाने का जज़्बा

    क़रनों की ख़मोशी को हसरत है सैल-ए-बयाँ बन जाने का

    सदियों की उदासी को ज़िद है इक नुत्क़-ए-जवाँ बन जाने का

    हर साँस के अंदर ग़लताँ है तग़ईर के सीने की धड़कन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    पर्बत पर्बत सागर सागर परचम अपना लहराता है

    महलों पे मिलों पे क़िलओं' पर अज़्मत के तराने गाता है

    गुल-बार रिदाए-ए-आज़ादी सरशार जवानी का परचम

    ये अम्न के नग़्मों का मुतरिब ख़ामोश बग़ावत का ये अलम

    तहज़ीब का ये ज़र्रीं आँचल ता'मीर का ये रंगीं दामन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    क़िंदील-ए-सहर नूर-ए-मंज़िल ख़ुर्शीद-ए-सहर शम-ए-साहिल

    ये ख़ून-ए-शहीदाँ का मख़्ज़न ये दर्द-ए-रफ़ीक़ाँ का हासिल

    ये अम्न का लहराता गेसू ये सिद्क़-ओ-मोहब्बत का दर्पन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    अब खेतों में गंदुम ही नहीं सोना भी उगेगा साक़ी

    बख़्शेगा तग़य्युर भूखों को इक रोज़ मिज़ाज-ज़ार्राती

    अब हीरे मोती उगलेंगे ये बाग़-ओ-सहरा कोह-ओ-दमन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    गाँव को सुनाएँगे मुज़्दा एहसार-ए-हसीं बन जाने का

    ज़र्रों को संदेसा देंगे तड़प कर महर-जबीं बन जाने का

    और तेरे उफ़ुक़ की लाली से होते हैं सितारे भी रौशन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    अब ख़ाक क़दम मजबूरों की बरसाएगी दुनिया पर सोना

    अब अतलस की क़िस्मत होगी पैराहन-ए-मेहनत-कश होना

    पड़ते ही निगाह-ए-साइक़ा-ए-ज़न जल उट्ठेगा हर नज़्म-ए-कुहन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    खेतों की ज़मीं ऊँची हो कर फ़िरदौस से रिश्ता जोड़ेगी

    अब हल की अनी सरमस्ती में आकाश के तारे तोड़ेगी

    वो दिन भी अब कुछ दूर नहीं जब सय्यारे होंगे आँगन

    सुब्ह-ए-वतन सुब्ह-ए-वतन

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए