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नज़्म
गिर्या-ए-सरशार से बुनियाद-ए-जाँ पाइंदा है
दर्द के इरफ़ाँ से अक़्ल-ए-संग-दिल शर्मिंदा है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ को लौटा दे मिरा माज़ी कि वक़्त-ए-संग-दिल
आज मैं भी ऐ दिल-ए-अफ़सुर्दा थोड़ा सब्र कर
आबिद आलमी
नज़्म
कुश्तगान-ए-संग-दिल का दिन मनाना जुर्म है
मादर-ए-हिन्दोस्ताँ को ग़म सुनाना जुर्म है
टीका राम सुख़न
नज़्म
ये संग-दिल अपनी बुज़-दिली से
फ़िरंगियों की मोहब्बत-ए-ना-रवा की ज़ंजीर में बंधे हैं
नून मीम राशिद
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
अपनी प्यास इक दूसरे के ख़ूँ से बुझा रही है
ये संग-दिल जश्न-ए-मर्ग-ए-अम्बोह-ए-बे-गुनाहाँ मना रहे हैं
ज़िया जालंधरी
नज़्म
भड़कती जा रही है दम-ब-दम इक आग सी दिल में
ये कैसे जाम हैं साक़ी ये कैसा दौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये संग-ओ-ख़िश्त नहीं दिल है दिल में धड़कन है
न छेड़ो इस को कहीं दाग़-दार हो जाए