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नज़्म
क्या अजब शाम है! देखो ज़ैबुन्निसा
फ़ुर्सतों में किसी पेड़ की नर्म छाँव में सोची हुई
मक़सूद वफ़ा
नज़्म
रहे पैवंद हब्लुल्लाह से पैदा न हो फ़ुर्क़त
सदा अज़बर रहे ये दर्स-ए-बुनियादी मुबारक हो