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नज़्म
गोल गोल सी नन्ही मुन्नी कर धनियों के दाने
इक अमरूद की डाली काट के बाबा ने जो बनाई थी
वली आलम शाहीन
नज़्म
सब से ज़ियादा मुश्किल है दुनिया में ख़ुद अपनी पहचान
केला और अमरूद ये बोले आम तो है गर्मी का फल
शौकत परदेसी
नज़्म
जहाँ पे अमरद-परस्त बैठे सफ़ा-ए-दिल की नमाज़ें पढ़ कर
ख़याल-ए-दुनिया से जाँ हटाते