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नज़्म
यही सरचश्मा-ए-असली है तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का
बग़ैर इस के बशर होना भी है इक सख़्त बीमारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
कौन हूँ क्या हूँ मैं सद-हैफ़ न समझा असलन
नक़्श मिट-मिट के बना ज़ेहन पे बन-बन के मिटा
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
मैं इक तारीख़ हूँ और मेरी जाने कितनी फ़सलें हैं
मिरी कितनी ही फ़रएँ हैं मिरी कितनी ही असलें हैं
जौन एलिया
नज़्म
अस्ल जो इबारत हो पस नविश्त हो जाए
फ़स्ल-ए-गुल के आख़िर में फूल उन के खुलते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
वो चाहे तो हर इक चीज़ को उस के अस्ल में ला सकती है
सिर्फ़ उसी के हाथों से दुनिया तरतीब में आ सकती है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
तेज़-तर होती हुई मंज़िल-ब-मंज़िल दम-ब-दम
रफ़्ता रफ़्ता अपना असली रूप दिखलाती हुई