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नज़्म
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जो अहल-ए-दिल को बे-मंज़िल बनाने की हैं तदबीरें
मगर अहल-ए-जहाँ को क्या ख़बर
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
ग़लत हैं नासिया-फ़रसाइयाँ तेरी तलब तेरी
तिरी राहें जुदा हैं अहल-ए-दिल से अहल-ए-हसरत से
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
नज़्म
यहाँ के सारे दानिश-वर यहाँ के सारे दीदा-वर
सभी अहल-ए-बसीरत अहल-ए-दिल मीनार अज़्मत के
नसीर प्रवाज़
नज़्म
लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सितम के दौर में हम अहल-ए-दिल ही काम आए
ज़बाँ पे नाज़ था जिन को वो बे-ज़बाँ निकले
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आख़िर तुम्हारी चुप दिलों में अहल-ए-दिल के चुभ गई
सच है कि चुप की दाद आख़िर बे-मिले रहती नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
वो हम-नफ़स कहाँ हैं वो हम-नशीं कहाँ हैं
वो अहल-ए-दिल कहाँ हैं वो मह-जबीं कहाँ हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
जमाल-ए-क़ुद्स की क़ुर्बत भी कितनी रूह-परवर है
कि इस मंज़िल में अहल-ए-दिल फ़ना का ग़म नहीं करते
मुनीर वाहिदी
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं