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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ुशबू-ए-जाँ-फ़ज़ा से हर जानवर मगन है
उन के रग-ए-अमल में वो जोश मौजज़न है
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
मैं कि 'साहिल' गरचे तेरा बंदा-ए-नाचीज़ हूँ
सोचता हूँ अपनी माँ का हक़ अदा कैसे करूँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
शुक्र करता है ये खा कर नाँद में जो पास हो
हों चने भीगे हुए 'साहिल' कि सूखी घास हो
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
अब अक्सर सोचता रहता हूँ ये आदत नहीं अच्छी
कि 'साहिल' दूसरे लोगों को मैं नाहक़ सताता हूँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
अब अक्सर सोचता रहता हूँ ये आदत नहीं अच्छी
कि 'साहिल' दूसरे लोगों को मैं नाहक़ सताता हूँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं