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नज़्म
अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में तेरे ज़ुहूर से फ़रोग़
ज़र्रा-ए-रेग को दिया तू ने तुलू-ए-आफ़्ताब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
छाई है क्यूँ फ़सुर्दगी आलम-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ पर
आज वो ''नल'' किधर गए आज ''दमन'' को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में मेरा ज़ुहूर भी हिजाब
हश्र में सब के सामने मेरा अमल है बे-नक़ाब