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नज़्म
तू ने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओं का इज़हार करूँ या न करूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
मिरे हमदम जुनून-ए-शौक़ का इज़हार करने दे