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नज़्म
कुछ ख़्वाब हैं परवर्दा-ए-अनवार मगर उन की सहर गुम
जिस आग से उठता है मोहब्बत का ख़मीर उस के शरर गुम
नून मीम राशिद
नज़्म
फ़ज़ा में जलते दिलों से धुआँ सा उठता है
अरे ये सुब्ह-ए-ग़ुलामी ये शाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
याद तो होगी वो मटिया-बुर्ज की भी दास्ताँ
अब भी जिस की ख़ाक से उठता है रह रह कर धुआँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क़ुरआँ से धुआँ सा उठता है ईमान का सर झुक जाता है
तस्बीह से उठते हैं शो'ले सज्दों को पसीना आता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
ज़माना चीख़ उठता है ये जब पहलू बदलती है
गरजती गूँजती ये आज भी मैदाँ में आती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आकाश के तारे बुझते हैं धरती से धुआँ सा उठता है
दुनिया को ये लगता है जैसे सर से कोई साया उठता है