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नज़्म
अपना हर ख़्वाब-ए-जवाँ सौंप चला हूँ तुझ को
अपना सरमाया-ए-जाँ सौंप चला हूँ तुझ को
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अरसा-ए-दहर पे सरमाया ओ मेहनत की ये जंग
अम्न ओ तहज़ीब के रुख़्सार से उड़ता हुआ रंग
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
हड्डियाँ पिस कर बनें ग़ाज़ा उरूस-ए-हिन्द का
हुस्न फिर हो जाए कुछ ताज़ा उरूस-ए-हिन्द का
अल्ताफ़ मशहदी
नज़्म
और उमँड आई थी वक़्त-ए-जंग दरिया की तरह
रावन-ए-खूँ-ख़्वार और वो कोह-पैकर इस के देव