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नज़्म
दिया रोना मुझे ऐसा कि सब कुछ दे दिया गोया
लिखा कल्क-ए-अज़ल ने मुझ को तेरे नौहा-ख़्वानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल की सर-बस्ता कली फ़र्त-ए-ख़ुशी से खुल जाए
उस को अमृत मिले जिस को तिरा पानी मिल जाए
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
गिरफ़्तार-ए-क़लक़ होंगे मुलाज़िम भी मुसाहिब भी
सर-ए-बालीं खड़े होंगे अहिब्बा भी अक़ारिब भी
बिसमिल देहलवी
नज़्म
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं रोज़-ओ-शब निगारिश-कोश ख़ुद अपने अदम का हूँ
मैं अपना आदमी हरगिज़ नहीं लौह-ओ-क़लम का हूँ