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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मस्जिदों में सब जम्अ' हो जाएँगे ख़ुर्द-ओ-कलाँ
दूर हो दिल की कुदूरत ये सवाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
हर ख़ुर्द-ओ-कलाँ हर पीर-ओ-जवाँ है आज निदा-ए-आज़ादी
ये कोशिश सब पर लाज़िम है दाइम हो बक़ा-ए-आज़ादी
अर्श मलसियानी
नज़्म
मुस्लिम से तनफ़्फ़ुर और कुफ़्फ़ार से याराना
आख़िर ये क़ला-बाज़ी क्यूँ खा गए मौलाना
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
रिफ़अत सरोश
नज़्म
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
ख़्वाब क्या होगा यही होगा कि हम हैं ला-जवाब
इस बिना पे आदमी का भी लगाएँगे हिसाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ