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नज़्म
तेरा मस्कन अर्ज़-ए-दिल्ली रश्क-ए-हुस्न-ए-कोह-ए-क़ाफ़
चाँद-सूरज रोज़ तेरे गिर्द करते हैं तवाफ़
रहबर जौनपूरी
नज़्म
जबीन-ए-शौक़ को सज्दों से फ़ुर्सत ही नहीं मिलती
कम-अज़-कम हुस्न का नक़्श-ए-क़दम ऐसा न होना था