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नज़्म
ज़र्रे ज़र्रे में तिरे ख़्वाबीदा हैं शम्स ओ क़मर
यूँ तो पोशीदा हैं तेरी ख़ाक में लाखों गुहर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
क़मर अपने लिबास-ए-नौ में बेगाना सा लगता था
न था वाक़िफ़ अभी गर्दिश के आईन-ए-मुसल्लम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ार-ओ-ख़स पर एक दर्द-अंगेज़ अफ़्साने की शान
बाम-ए-गर्दूं पर किसी के रूठ कर जाने की शान
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये कम नहीं है कि तिफ़्ली-ए-रफ़्ता छोड़ गई
दिल-ए-हज़ीं में कई छोटे छोटे नक़्श-ए-क़दम
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
उस रंग-भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
है इम्तिहाँ सर पर खड़ा मेहनत करो मेहनत करो
बाँधो कमर बैठे हो क्या मेहनत करो मेहनत करो