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नज़्म
बाज़ार गली और कूचों में ग़ुल-शोर मचाया होली ने
या स्वाँग कहूँ या रंग कहूँ या हुस्न बताऊँ होली का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
गली-कूचों में बिखरी शोरिश-ए-ज़ंजीर बिस्मिल्लाह
दर-ए-ज़िंदाँ पे बुलवाए गए फिर से जुनूँ वाले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
पोशाक-ए-छिड़कवां से हर जा तय्यारी रंगीं-पोशों की
और भीगी जागह रंगों से कर कुंज गली और कूचों की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कल भी ढूँडूँगा इन्हें जा के गली कूचों में
कल भी मिल जाएँगे इन ख़्वाबों के पैकर कितने
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
लीडर के मुँह पे शहर के कूचों की गर्द है
''इश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द है''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ज़िंदगानी की एक इक बात की याद आती है
शाह-राहों में गली कूचों में इंसानों की भीड़