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नज़्म
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ज़िया-ए-ख़ामोश के सुकूत-आश्ना तरन्नुम में घुल रहा है
कि उक़्दा-ए-गेसू-ए-शब-ए-तार खुल रहा है
कृष्ण मोहन
नज़्म
मैं ख़ुदावंद हूँ उस वुसअत-ए-बे-पायाँ का
मौज-ए-आरिज़ भी मिरी निकहत-ए-गेसू भी मिरी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
निकहत-ए-गेसू को तेरी निकहत-ए-सुम्बुल लिखूँ
तेरे नर्म-ओ-नाज़ुक इन होंटों को बर्ग-ए-गुल लिखूँ
जय राज सिंह झाला
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़्वाहिश-ए-साया-ए-गेसू-ए-परेशाँ ही नहीं
जन्नत-ए-आरिज़-ओ-लब की भी तमन्ना न करूँ