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नज़्म
ख़ुशनुमा शहरों का बानी राज़-ए-फ़ितरत का सुराग़
ख़ानदान-ए-तेग़-ए-जौहर-दार का चश्म-ओ-चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मगर मैं घर से ख़ानदान भर ख़ुशियों के लिए निकला हूँ
और वहाँ मेरा इंतिज़ार किया जा रहा है
सरवत हुसैन
नज़्म
परतव रोहिला
नज़्म
रंग-रंग के फूल हैं जिस में ये ऐसी फुलवारी
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब जैसे इक ख़ानदान