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नज़्म
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न दस्त-ओ-नाख़ुन-ए-क़ातिल न आस्तीं पे निशाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तू ने की तख़्लीक़ ऐ महव-ए-ख़िराम-ए-जुस्तुजू
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से काएनात-ए-रंग-ओ-बू
मयकश अकबराबादी
नज़्म
आज हम सब शाद हैं अपना वतन आज़ाद है
हम हैं बुलबुल जिस चमन के वो चमन आज़ाद है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
फिर उसी वादी-ए-शादाब में लौट आया हूँ
जिस में पिन्हाँ मिरे ख़्वाबों की तरब-गाहें हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क़स्र-ए-शाही में कि मुमकिन नहीं ग़ैरों का गुज़र
एक दिन नूर-जहाँ बाम पे थी जल्वा-फ़िगन
शिबली नोमानी
नज़्म
कभी जब लफ़्ज़-ए-आज़ादी का सच्चा तर्जुमाँ होगा
तो फिर ये हिन्द ख़्वाबों का मिरे हिन्दोस्ताँ होगा
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
वो परस्तारान-ए-आज़ादी शहीदान-ए-वतन
ज़ीनत-ए-हिन्दोस्ताँ होना था जिन का बाँकपन