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नज़्म
नशात-ए-रूह-अफ़ज़ा की फ़ज़ाओं में वो रंगीनी
वो फ़व्वारों की नग़्मा-साज़ियों में कैफ़-ए-ख़ुद-बीनी
मयकश अकबराबादी
नज़्म
इन 'अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यों है
ये तंग-दिली क्यों है ये कम-नज़री क्यों है
असद मुल्तानी
नज़्म
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
अगर वो पल मुझे इक बार मिल जाए तो मैं पूछूँ
कि ये सौदा मिरे सर में समाया किस लिए तू ने
सलमान अंसारी
नज़्म
वो जवाँ हो के अगर आतिश-ए-सद-साला बनी
ख़ुद ही सोचो कि सितम-गारों पे क्या गुज़रेगी